Wednesday, July 20, 2016

सम्भालों अपनी गौ माताओं को

सूफ़ी ध्यान श्री की कलम से... गुजरात में दलित युवकों के साथ जो कुछ भी हुआ, निश्चय ही दुखद था। उससे भी बड़ा दुखद यह था कि दलितों द्वारा त्वरित प्रक्रिया में सार्वजनिक संपत्तियों को आग लगाना। मैं यहाँ यह बिल्कुल नहीं कहना चाहता कि दलितों को इस अन्याय और शोषण के विरुद्ध चुप रहना चाहिए था। किन्तु प्रतिक्रिया का स्वरुप कुछ और होना चाहिए था।एक ऐसा जवाब जो किसी सवाल का सटीक जवाब हो। जैसा कि अभी गुजरात में त्वरित प्रतिक्रिया से खुद को नियंत्रित करते हुए गुजराती दलित समाज द्वारा मृत गायों को सरकारी कार्यालयों तक इस सन्देश के साथ पहुँचाया जा रहा है कि तथाकथित गौ माताओं के बेटे अपने माताओं का अंतिम संस्कार स्वयं करे। मैं नहीं समझता कि इस अपंग, अपाहिज, अमानवीय, निर्दयी मनुवादी विचारधारा को इससे बेहतर जवाब दिया जा सकता है। इससे बड़ा पाप क्या हो सकता है कि गायों को माता कहने वाला यह समाज उन बेजुबान जानवरों के मरने के बाद उनकी चमड़ी उतारने के लिए दूसरों के हवाले कर देता है। क्या कोई बेटा अपनी माँ के मरने के बाद उसकी चमड़ी उतारने के लिए उसे किसी और को सौंप सकता है। इस बर्बरता पूर्वक निर्णय को सोचने मात्र से रूँह काप उठता है। आखिर अपनी माताओं का संस्कार तथा कथित बेटे क्यों नहीं करते? यही सही समय है कि गुजरात ही नहीं बल्कि पुरे भारतीय दलित समाज को इस सफाई कार्य से खुद को अलग करते हुए इन मृत माताओं को तथाकथित उनके बेटों के हवाले कर देना चाहिए। ताकि वे अपनी माताओं का अंतिम संस्कार धूम-धाम से कर सके। क्यों न यह सारी जिम्मेदारी मनुवादी दृष्टिकोण के ठेकेदारों के माथे सौप देना चाहिए जो आये दलितों एवम् कमजोरों का शोषण धर्म और परम्परा के नाम पर करते आ रहे हैं?         

1 comment:

  1. माननीय ध्यान श्री जी , इस देश में गाय को माता कहने का तात्पर्य यह कि सदियों पूर्व जब इन्सान विकास से कोसों दूर था और खेती-किसानी जीवकोपार्जन का मुख्य आधार था,तब बैल एक मात्र संसाधन था जिससे कृषि कार्य संभव था ! बैल ही खेत में, बैल ही बैलगाड़ी में अतः बैल का अत्यंत महत्त्व था ! चूँकि बैल गाय का वंशज था अतः बैल की प्राप्ति के लिए गाय का होना अनिवार्य था !
    तब गाय के महत्त्व को समझ समाज में गौ पालन की प्रथा चल पड़ी ! इसके दूध,गोबर,मूत्र आदि के गुणों के चलते इसे सम्मान की दृष्टि से गौ-माता के रूप में जाना गया ! कालांतर में भिन्न-भिन्न समयों में इस विषय पर अपने-अपने मत-अनुसार व्याख्याएं होतीं रही !फिर विकास-चक्र ने बैल की महत्ता को ही समाप्त सा कर दिया !समाज का हर समुदाय गाय पालता था और उसके मरने पर चर्मकार उसका चमडा निकालता था वह चमड़ा उसकी जीविका का साधन था !यहाँ यह कहना की कोई बेटा अपनी माँ के मरने के बाद उसकी चमड़ी उतरने हेतु दूसरों को सौप दे ,नितांत अमानवीय तथा अव्यवहारिक होगा !कहने को तो इस देश में नदियों को भी माँ कह कर पुकारा जाता है ! उसी नदी के जल को लोग पीते है, नहाते है,शौच-आदि करते हैं और फिर उसी में नालों की गन्दगी को बहा देते हैं !तब कोई नहीं कहता की सोच कर कांप उठता हूँ की लोगों ने अपनी माँ को नाले में बहा दिया !
    इस देश का बंटाधार इस देश की दोगली राजनीति ने किया है !यह जातिवाद का जहर और यह धर्मान्धता का जुनून सब का सब प्रायोजित है ! विकास चक्र के समक्ष जात-पात,धर्म-संप्रदाय सब गौण हैं !किन्तु देश की घटिया राजनीति जातिवाद के वृक्ष को सींच-सींच कर वटवृक्ष बनाने में जुटी है !

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